Tuesday, April 19, 2016

श्रीराम भक्त।


श्रीराम भक्त।
श्रीराम भक्त हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। इसके अलावा मंगलवार और शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। तथा निम्‍नलिखित मंत्र का जाप करना चाहिए-
जय हनुमंत संत हितकारी, सुन लिजै प्रभु अरज हमारी।
जन के काज विलंब न कीजै, आतुर दौरि महा सुख दीजै।।

श्रीराम नाम का जप करना और चमेली के तेल का दीपक लगाने से भी प्रभु हनुमान प्रसन्न होते हैं। शनिवार के दिन एक नींबू और 4 लौंग लेकर हनुमान मंदिर जाएं। उस नींबू के ऊपर चारों लौंग लगा कर हनुमान चालीसा का पाठ करें या हनुमानजी के मंत्रों का जप करें। हनुमानजी से सफलता दिलवाने की प्रार्थना करें। इसके बाद हनुमान जी का पूजन करें। पूजन के बाद यह अभिमंत्रित नींबू घर पर किसी पवित्र स्थान पर रखें।

हनुमानजी को अर्पित करें पान-
ध्यान रहे हनुमानजी के लिए बगैर तंबाकू, चूना और सुपारी का पान बनवाएं। हनुमानजी के लिए बनवाए गए पान में केवल कत्था, गुलकंद, सौंफ, खोपरे का बूरा, सुमन कतरी डलवाएं।

Friday, April 15, 2016

श्रीरामनवमी।


श्रीरामनवमी।
भय प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी।
हर्षित महतारी मुनि-मन हारी अद्भुत रूप निहारी॥

मुकेश कुमार कुमावत की ओर से भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव एवं श्रीरामनवमी की हार्दिक बधाई और मंगलमयी शुभकामनायें! मैं सच्चे मन से भगवान श्रीराम से प्रार्थना करता हूँ कि आप सुखवान हो, समृद्धिवान हो, कीर्तिवान हो, यशवान हो, आयुष्मान हो, स्वस्थ्य रहे, आपके जीवन का हर पल खुशियों से भरपूर रहे। जीवन के प्रत्येक क्षण आप प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे, आपकी कीर्ति की पताका निरंतर फहराती रहे.. जय जय श्री राम।

Friday, April 08, 2016

नवदुर्गा।

नवदुर्गा।
कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी मां सती पार्वती को ही शैलपुत्री‍, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जाना जाता है। इसके अलावा भी मां के अनेक नाम हैं जैसे दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि। इनके दो पुत्र हैं गणेश और कार्तिकेय। इन नवों दुर्गा को पापों के विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परंतु यह सब एक हैं।

निम्नांकित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं-
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

1. शैलपुत्री : शैल पुत्री का अर्थ पर्वत राज हिमालय की पुत्री। यह माता का प्रथम अवतार था जो सती के रूप में हुआ था।
2. ब्रह्मचारिणी : ब्रह्मचारिणी अर्थात् जब उन्होंने तपश्चर्या द्वारा शिव को पाया था।
3. चंद्रघंटा : चंद्र घंटा अर्थात् जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक है।
4. कूष्मांडा : ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें कूष्मांड कहा जाने लगा। उदर से अंड तक वह अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए है, इसीलिए कूष्मांडा कहलाती है।
5. स्कंदमाता : उनके पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वह स्कंद की माता कहलाती है।
6. कात्यायिनी : महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था, इसीलिए वे कात्यायिनी कहलाती है।
7. कालरात्रि : मां पार्वती काल अर्थात् हर तरह के संकट का नाश करने वाली है इसीलिए कालरात्रि कहलाती है।
8. महागौरी : माता का रंग पूर्णत: गौर अर्थात् गौरा है इसीलिए वे महागौरी कहलाती है।
9. सिद्धिदात्री : जो भक्त पूर्णत: उन्हीं के प्रति समर्पित रहता है, उसे वह हर प्रकार की सिद्धि दे देती है। इसीलिए उन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है।

Sunday, April 03, 2016

हिंगलाज भवानी।


हिंगलाज भवानी।
हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में सिंध राज्य की राजधानी कराची से १२० कि॰मी॰ उत्तर-पश्चिम में हिंगोल नदी के तट पर ल्यारी तहसील के मकराना के तटीय क्षेत्र में हिंगलाज में स्थित एक हिन्दू मंदिर है। यह इक्यावन शक्तिपीठ में से एक माना जाता है और कहते हैं कि यहां सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था। एक लोक गाथानुसार चारणों की प्रथम कुलदेवी हिंगलाज थी, जिसका निवास स्थान पाकिस्तान के बलुचिस्थान प्रान्त में था। हिंगलाज नाम के अतिरिक्त हिंगलाज देवी का चरित्र या इसका इतिहास अभी तक अप्राप्य है। हिंगलाज देवी से सम्बन्धित छंद गीत चिरजाए अवश्य मिलती है। प्रसिद्ध है कि सातो द्वीपों में सब शक्तियां रात्रि में रास रचाती है और प्रात:काल सब शक्तियां भगवती हिंगलाज के गिर में आ जाती है-
सातो द्वीप शक्ति सब रात को रचात रास।
प्रात:आप तिहु मात हिंगलाज गिर में।।

ये देवी सूर्य से भी अधिक तेजस्वी है और स्वेच्छा से अवतार धारण करती है। इस आदि शक्ति ने ८वीं शताब्दी में सिंध प्रान्त में मामड़(मम्मट) के घर में आवड देवी के रूप में द्वितीय अवतार धारण किया। ये सात बहिने थी-आवड, गुलो, हुली, रेप्यली, आछो, चंचिक और लध्वी। ये सब परम सुन्दरियां थी। कहते है कि इनकी सुन्दरता पर सिंध का यवन बादशाह हमीर सुमरा मुग्ध था। इसी कारण उसने अपने विवाह का प्रस्ताव भेजा पर इनके पिता के मना करने पर बादशाह ने उनको कैद कर लिया। यह देखकर छ: देवियाँ टू सिंध से तेमडा पर्वत पर आ गईं। एक बहिन काठियावाड़ के दक्षिण पर्वतीय प्रदेश में 'तांतणियादरा' नामक नाले के ऊपर अपना स्थान बनाकर रहने लगी। यह भावनगर कि कुलदेवी मानी जाती हैं, ओर समस्त काठियावाड़ में भक्ति भाव से इसकी पूजा होती है। जब आवड देवी ने तेमडा पर्वत को अपना निवास स्थान बनाया तब इनके दर्शनाथ अनेक चारणों का आवागमन इनके स्थान कि और निरंतर होने लगा और इनके दर्शनाथ हेतु लोग समय पाकर यही राजस्थान में ही बस गए। इन्होने तेमडा नाम के राक्षस को मारा था, अत: इन्हे तेमडेजी भी कहते है। आवड जी का मुख्य स्थान जैसलमेर से बीस मील दूर एक पहाडी पर बना है। १५वीं शताब्दी में राजस्थान अनेक छोटे छोटे राज्यों में विभक्त था। जागीरदारों में परस्पर बड़ी खींचतान थी और एक दूसरे को रियासतो में लुट खसोट करते थे, जनता में त्राहि त्राहि मची हुई थी। इस कष्ट के निवारणार्थ ही महाशक्ति हिंगलाज ने सुआप गाँव के चारण मेहाजी की धर्मपत्नी देवलदेवी के गर्भ से श्री करणीजी के रूप में अवतार ग्रहण किया।
आसोज मास उज्जवल पक्ष सातम शुक्रवार।
चौदह सौ चम्मालवे करणी लियो अवतार।।