Wednesday, February 18, 2015

मण्ढ़ा भीमसिंह।

मण्ढ़ा भीमसिंह।
ऐतिहासिक पृष्टभूमि:- कुछ समय पूर्व जयपुर के शासक महाराज माधोसिंह के शासनकाल के दौरान जयपुर प्रशासन जागीरों में बंटा हुआ था। मण्ढ़ा  भी जयपुर की जागीर के अन्तर्गत था। इनके अन्तर्गत 12 गाँवो का शासन आता था। जयपुर के महाराजा माधोसिंह के काल में मण्ढ़ा’  के जागीरदार ठाकुर भीमसिंह हुआ करते थे। जिनके भाई का नाम लक्ष्मण सिंह था वह राज काज के कार्य संभाला करते थे। जबकि अधिकतर समय ठाकुर भीमसिंह जी खा पीकर मस्त रहा करते थे। उस समय महाराजा माधोसिंह ने मण्ढ़ा भीमसिंह को दूदू के नीचे दे दिया था इस बात से नाराज होकर भीमसिंह ने दूदू,  पचेवर और अन्त में जाकर साली ग्राम से गणगौर को लूट लिया।

इस बात पर इस ग्राम में एक कहावत प्रसिद्ध हो गई वह कहावत इस प्रकार है-
दूदू लूटी,  पचेवर लूटी,  जा लूटी साली।
साली बापड़ी कांई कर बना रांगड़ा चाली।।
इस तरह गाँवों को लूटने की बात महाराजा माधोसिंह ने सुनी तो उन्होने भीमसिंह को जयपुर दरबार में उपस्थित होने के लिए बुलाया। जब ठाकुर भीमसिंह जी जयपुर पंहुचे तो दरबार खत्म हो चुका था। तो उन्होने दरबार से कहकर महाराजा माधोसिंह जी से मिलने की इच्छा जाहिर की तो दरबार ने उन्हें मना कर दिया तो भीमसिंह ने अपने घोड़े को ऐड़ लगाकर दौड़ाया और चांदपोल गेट को लांघ दिया। गेट को लांघने के बाद घोड़ा मर गया और ठाकुर भीमसिंह सिधे महाराजा माधोंसिह के पास चले गये तो उन्होनें कहा की आपको द्वारपालों ने रोका नहीं की,  तो उन्होनें कहा की मैं चांदपोल गेट को लांघ कर आया हूँ। इस बात से प्रसन्न होकर महाराजा माधोसिंह ने भीमसिंह को जयपुर में एक गढ़ दिया जो मण्ढ़ा हाऊसके नाम से प्रसिद्ध हुआ इसके अलावा मण्ढ़ा को अपनी अलग ही जागीर प्रदान कर उन्हे 12 गाँवों की जागीरदारी संभाला दी। अतः उस समय से ही मण्ढ़ा गाँव को मण्ढ़ा भीमसिंह के नाम से जाना जाता है। आज भी ठाकुर भीमसिंह की पीढियाँ जागीरदारों के नाम से जानी जाती है।

(दुर्ग व किला)-
(अ) गढ़ - प्राचीन काल में यहां गढ़ पर जागीरदारों के नाम से शासन किया जाता था। गाँव के जागीरदार यहां निवास करते थे। यहां इमारत तीन मंजिल ऊँची है। इसे गढ़के नाम से जाना जाता है। यह लगभग 5-7 बीघा जमीन पर बना हुआ है। इसके दो द्वार है। मुख्य द्वार पूर्व दिशा में खुलता है तथा दूसरा द्वार जो पीछे कि और खुलता है अर्थात् दूसरा द्वार उत्तर दिशा में खुलता है जो कि एक गुप्त द्वार है। पहले गढ़ के चारों और पानी भरा हुआ होता था। उपरी मंजिल पर महिलायें निवास करती है। महिलाओं द्वारा उत्सव देखने तथा बैठने के लिए झरोखे भी निर्मित किए हुए है। गढ़ के चारो बुर्ज (मोटी दीवारों का निर्माण) का निर्माण किया हुआ है जो इस इमारत को मजबूती प्रदान करती है। ये बुर्जे 10 फुट चोड़ी बनी हुई है। इसमें विभिन्न महल निर्मित है जैसे- दादीवाडा का महल (जिसमें प्राचीन समय में डर लगता था), रानीमहल ( जिसे छतरसाल के नाम से भी जाना जाता है। जिसमें विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तिया, चित्र आदि रखे हुए है ), जनाना खाना ( जिसमें महिलाये निवास करती है, इसमें पुरूषों का जाना वर्जित है), सूरजमहल (कहा जाता है यहां सूर्य की पहली किरण पड़ती है) आदि। इसमें 3 किमी की सुरंग है जो बाग में खुलती है। इसकी उपरी मंजिल पर खिड़किया है जिसमें गाँव के अन्तिम छोर देखे जा सकते है।

(ब) रघुनाथ मन्दिर - प्राचीन समय में यह गाँव के शासको का नीजी मन्दिर था। जिसमें देवी-देवताओं की सात धातु से बनी प्रतिमाएँ स्थापित है। यह 225 वर्गफुट में फैला हुआ है। इसके चारों किनारो पर छतरिया बनी हुई है। यह अति प्राचीन मन्दिर है बताया जाता है कि जिस दिन तुलसी दास जी का देहवासन हुआ था उस दिन इस मन्दिर की नींव लगाई गयी थी।

(स) बाग (दुर्ग का हिस्सा) - कहा जाता है कि यहां के जागीरदार केसरी सिंह जी ने वर्तमान गढ़ से दुगुना गढ़ बनाना चाहा था। परन्तु जब इसका चैथाई निर्माण हुआ तो इनकी पत्नि का देहान्त हो गया और निर्माण बीच में ही रोक दिया गया। यह लगभग 52 बीघा में फेला हुआ है। यहां घोड़ो की अच्छी किस्म रखी जाती थी,  अर्थात् यहां के घोड़े प्रसिद्ध थे। किद्वन्ती है कि उस समय यहां राजस्थान की सबसे अच्छी अस्तबल (घोड़ो के रहने का स्थान) का निर्माण कराया गया था। यहां पर गढ़ से एक गुप्त सुरंग भी आती है।

हिन्दू धर्म- यहां 80-90 प्रतिषत लोग हिन्दू धर्म के निवास करते है। इसलिए यहां हिन्दू देवी-देवताओं के मन्दिर अधिक देखने को मिलते है। लगभग 4-5 प्रतिषत लोग इस्लाम धर्म के है। जैन धर्म के लोग अपेक्षाकृत हिन्दू धर्म के लोगो से बहुत कम है। 4-5 प्रतिषत लोग यहां जैन धर्म के निवास करते है। इनके द्वारा भी यहां जैन मन्दिर का निर्माण करवाया गया। यहां कई भिक्षु-भिुक्षुणियां भी जैन पर्वो पर जैन आश्रालयों से आती है। विभिन्न धर्मो के लोग रहते हुए भी यहां आपसी भेदभाव नहीं पाया जाता है, सब लोग भाईचारे की भावना रखते है।

त्यौहार - यहां विभिन्न त्यौहारो को अत्यंत हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यहां मुख्य त्योहारों में दीपावली,  होली,  गणगौर,  तीज,  मकर सक्रांति,  दशहरा,  ताजिया-मुहर्रम,  ईद,  महावीर जयन्ती आदि आते है। लोग बहुत उत्साह से त्यौहारों को मनाने की तैयारी करते है। और उनका पूर्ण आनन्द लेते है।

मेले - मण्ढ़ा भीमसिंह गाँव में कई मेले लगते है। जिनमें सबसे बड़ा दशहरे का मेला लगता है। चैत्र मास में हनुमान जयन्ती भाद्रपद माह में तेजाजी का मेला गणगौर का मेला भी लगता है। स्त्रिया ईश्‍वर और गणगौर की पूजा करती है। गणगौर का त्यौहार हर्षेल्लास से मनाया जाता है।

शिक्षा - शिक्षा के क्षैत्र में यह गाँव आस-पास के गाँवो से उन्नत है यहां विभिन्न विद्यालय तथा महाविद्यालय स्थापित है इसलिए इसे उभरती हुई शिक्षा नगरी कह सकते है। जो निम्न है-

विद्यालय-राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, आशादीप बाल मन्दिर उच्च माध्यमिक विद्यालय, गीतांजली उच्च माध्यमिक विद्यालय, विवेकानन्द सीनियर सैकेण्डरी विद्यालय, गीतांजली इन्टरनेशनल एकेडमी, विवेकानन्द चिल्ड्रन एकेडमी, आशुतोष इन्टरनेषनल एकेडमी तथा वेल किड्स एकेडमी।

महाविद्यालय-आषुतोष महाविद्यालय और छत्रपति शिवाजी महाविद्यालय

चिकित्सा - अस्पताल गुलाब कल्याण मेमोरियल चिकित्सालय, आयुर्वेदिक चिकित्सालय और पशु चिकित्सालय।

बैंकिग- गाँव में यूको बैंक शाखा स्थापित है। इस शाखा की स्थापना 1979 ई. में हुई थी।

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