Monday, February 23, 2015

श्रीकृष्ण स्‍तुति।



श्रीकृष्ण स्‍तुति।
भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के अनेक रूपों ने कृष्ण भक्ति की धारा को हर दिल में बहाया। जहां मीरा नृत्य और गायन से कृष्ण भक्ति में समा गईं, वहीं चैतन्य महाप्रभु ने नाच और रुदन से कृष्ण भक्ति का रस बहाया।
इसी कड़ी में श्रीकृष्ण के परम भक्त श्री वल्लभाचार्य, भगवान कृष्ण के आनंदस्वरूप की भक्ति में ऐसे डूबे कि उन्होंने भगवान के सुंदर स्वरूप को बताने के लिए 'मधुराष्टकं' रच दिया। इसमें श्रीकृष्ण के सौंदर्य को ऐसा उतारा कि आज भी जब कोई भक्त या भक्त समूह इसको गाता है, तब मन-मस्तिष्क के साथ पूरा वातावरण आनंद रस में डूब जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म पर 'मधुराष्टकं' का गान उत्सव के आनंद को बढ़ाता है, साथ ही जीवन के सभी तनावों को दूर कर सुख और आनंद देता है। जब दिल और दिमाग सकारात्मक ऊर्जा से भरा हो तो यह तय है कि कोई भी इंसान किस्मत को संवार सकता है।
ऐसी चाहत पूरी करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के सुंदर रूप का स्मरण करें –

मधुराष्टकंअधरम मधुरम वदनम मधुरमनयनम मधुरम हसितम मधुरम।
हरदयम मधुरम गमनम मधुरममधुराधिपतेर अखिलम मधुरम॥1॥

वचनं मधुरं, चरितं मधुरं, वसनं मधुरं, वलितं मधुरम् ।
चलितं मधुरं, भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥2॥

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः, पाणिर्मधुरः, पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं, सख्यं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥3॥

गीतं मधुरं, पीतं मधुरं, भुक्तं मधुरं, सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं, तिलकं मधुरं, मधुरधिपतेरखिलं मधुरम् ॥4॥

करणं मधुरं, तरणं मधुरं, हरणं मधुरं, रमणं मधुरम् ।
वमितं मधुरं, शमितं मधुरं, मधुरधिपतेरखिलं मधुरम् ॥5॥

गुञ्जा मधुरा, माला मधुरा, यमुना मधुरा, वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं, कमलं मधुरं, मधुरधिपतेरखिलं मधुरम् ॥6॥

गोपी मधुरा, लीला मधुरा, युक्तं मधुरं, मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं, शिष्टं मधुरं, मधुरधिपतेरखिलं मधुरम् ॥7॥

गोपा मधुरा, गावो मधुरा, यष्टिर्मधुरा, सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं, फलितं मधुरं, मधुरधिपतेरखिलं मधुरम् ॥8॥॥

इति श्रीमद्वल्लभाचार्यविरचितं मधुराष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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