महामृत्युञ्जय शिव।
शिव आदि देव है। शिव को समझना या जानना सब कुछ जान लेना जैसा हैं। अपने भक्तों पर परम करूणा जो रखते है, जिनके कारण यह सृष्टि संभव हो पायी है, वह एकमात्र शिव ही है। शिव इस ब्रह्माण्ड में सबसे उदार एवं कल्याणकारी हैं। अनेक रुपों में शिव सिर्फ दाता हैं। सम्पूर्ण लोक के सभी देवता और देवियाँ महा ऐश्वर्यशाली हैं, परन्तु शिव के पास सब कुछ रहते हुए भी वे वैरागी हैं। कारण वे ही निराकार और साकार पूर्ण ब्रह्म हैं। शिव पल पल कितने विष पीते है, कहना क्या? दक्ष प्रजापति ने अपनी पुत्री सती का कन्यादान किया था, शिव दमाद थे। परन्तु एक बार किसी सभा में सभी देवों की उपस्थिती में दक्ष के आने पर सभी देवता और ॠषिगण सम्मान में दक्ष को प्रणाम करने लगे, परन्तु शिव कुछ नही बोले। इस बात को स्वयं का अनादर समझ कर दक्ष शिव को भूतों का स्वामी, वेद से बहिष्कृत रहने वाला कह अपमान करने लगे, परन्तु शिव ने कुछ नहीं कहा।
कुछ काल बाद दक्ष प्रजापति ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन कनखल क्षेत्र में रखा सभी देवी, देवता, ॠषि, मुनि सहित असुर, नवग्रह, नक्षत्र मण्डल को भी निमंत्रित किया परन्तु शिव को नही बुलाया। कारण शिव के अपमान के लिए ही यज्ञ रखा गया था। शिव भक्त दधिचि शिव के बिना यज्ञ को अमंगलकारी बताकर वहां से चले गये। अभिमानी लोगों का यही हाल है वो थोड़ी सी शक्ति आ जाने पर अपने को सर्वज्ञ समझ लेते है। रोहिणी संग चन्द्रमा को जाते देख सती को जब इस बात का ज्ञान हुआ कि मेरे पिता के यहां यज्ञ में ये जा रहे है तो आश्चर्य हुआ कि हमे क्यों नही बुलाया? वे शिव जी के समीप जाकर बोली कि स्वामी मेरे पिता ने हमें यज्ञ में नहीं बुलाया फिर भी मैं जाना चाहती हूँ। सती को शिव नें समझाया कि बिन बुलाए जाना मृत्यु के समान हैं, परन्तु सती द्वारा हठ करने पर शिव ने आज्ञा प्रदान की। यज्ञ में जब शिव की निन्दा सुन सती ने आत्मदाह कर लिया तो शिव ने अपनी जटा से वीरभद्र तथा कालिका को प्रकट कर असंख्य गणों के साथ दक्ष यज्ञ के विनाश के लिए भेजा। क्या परिणाम हुआ अंहकारी, देव, दानव के साथ दक्ष का भी सिर मुण्डन हो गया।फिर शिव की दया ही थी कि ब्रह्मा जी के स्तुति से प्रसन्न होकर दक्ष को पशु मुख देकर अभय दान प्रदान किया। शिव है तो सारी सृष्टि हैं। शिव का एक रूप है "महामृत्युञ्जय" जो सभी को अमृत प्रदान करते है।
जय श्री महाकाल…
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