शाप मुक्ति।
त्रेता युग के दौरान भगवान श्रीराम ने अश्वमेघ यज्ञ के लिए भगवान रघुनाथ की इस मूर्ति को अपने हाथों से बनाया था। यज्ञ पूरा होने पर इसे श्रीराम ने अपने राज्य में ही स्थापित किया था। मगर कुल्लवी राजा अपने पाप धोने के लिए इसे हिमाचल ले आया था। ये कहानी राजा जगत सिंह से जुड़ी है जिसने अपने अहंकार में एक बड़ा पाप कर दिया था। इसके बदले उसे ऐसा खौफनाक शाप मिला था कि उसका जीना मुश्किल हो गया था। कहा जाता है कि 17वीं शताब्दी में कुल्लू में राजा जगत सिंह का राज था। एक दिन उसे सूचना मिली कि गांव के एक पंडित दुर्गादत्त को घाटी में काम करते वक्त कुछ हीरे मोती मिले हैं। राजा उसे पाना चाहता था। अहंकार में आकर उसने इन्हें पाने की ठान ली। राजा ने सैनिकों को आदेश दिए कि दुर्गादत्त से सारे मोती छीनकर खजाने में जमा किए जाएं। सैनिक भी चले गए और दुर्गादत्त को खूब मारा पीटा लेकिन हीरे मोती नहीं मिले। उसे आए दिन सबके सामने सजा दी जाने लगी।ऐसा माना जाता है कि शायद दुर्गादत्त के पास ज्ञान के अलावा और कुछ नहीं था। जब राजा का जुल्म हद से बढ़ गया तो दुर्गादत्त ने खुद को परिवार सहित अपने घर में बंद कर लिया। इसके बाद उसने घर को आग लगा दी और खुद भी परिवार सहित जल गया। मरने से पहले दुर्गादत्त ने राजा को शाप दिया था कि जब भी राजा चावल खाएगा तो उसे चावल के दानों की जगह कीड़े दिखाई देंगे। वहीं पीने का पानी खून बन जाएगा। बाद में शाप का असर दिखने लगा और राजा का खाना पीना मुश्किल हो गया। राजा बहुत दुखी हुआ। उसका अहंकार टूट चुका था। शाप के डर से वह एक संत के पास गया जहां संत ने कहा कि उसे अपने राज्य में भगवान रघुनाथ का मंदिर बनवाना होगा। इसके लिए अयोध्या से मूर्ति लानी होगी। राजा ने ऐसा ही किया और अयोध्या से श्रीराम की बनाई भगवान रघुनाथ की मूर्ति लाकर कुल्लू में भव्य मंदिर बनवा दिया। इसके बाद घाटी में समृद्घि लौटने लगी। राजा ने अपना राज्य भगवान रघुनाथ को सौंप दिया। इसी के बाद ऐतिहासिक दशहरा मनाया जाने लगा। घाटी में भगवान रघुनाथ सबसे बड़े देवता हैं और हजारों देवता उनके आगे शीश झुकाते हैं।कहते हैं भगवान रघुनाथ सबसे अमीर देवताओं में से एक है। घाटी के लोग आज भी प्राकृतिक आपदा के समय अपने ईष्ट देव की पूजा अर्चना करते हैं। देवता उनकी सारी मन्नतें पूरी भी करते हैं।
त्रेता युग के दौरान भगवान श्रीराम ने अश्वमेघ यज्ञ के लिए भगवान रघुनाथ की इस मूर्ति को अपने हाथों से बनाया था। यज्ञ पूरा होने पर इसे श्रीराम ने अपने राज्य में ही स्थापित किया था। मगर कुल्लवी राजा अपने पाप धोने के लिए इसे हिमाचल ले आया था। ये कहानी राजा जगत सिंह से जुड़ी है जिसने अपने अहंकार में एक बड़ा पाप कर दिया था। इसके बदले उसे ऐसा खौफनाक शाप मिला था कि उसका जीना मुश्किल हो गया था। कहा जाता है कि 17वीं शताब्दी में कुल्लू में राजा जगत सिंह का राज था। एक दिन उसे सूचना मिली कि गांव के एक पंडित दुर्गादत्त को घाटी में काम करते वक्त कुछ हीरे मोती मिले हैं। राजा उसे पाना चाहता था। अहंकार में आकर उसने इन्हें पाने की ठान ली। राजा ने सैनिकों को आदेश दिए कि दुर्गादत्त से सारे मोती छीनकर खजाने में जमा किए जाएं। सैनिक भी चले गए और दुर्गादत्त को खूब मारा पीटा लेकिन हीरे मोती नहीं मिले। उसे आए दिन सबके सामने सजा दी जाने लगी।ऐसा माना जाता है कि शायद दुर्गादत्त के पास ज्ञान के अलावा और कुछ नहीं था। जब राजा का जुल्म हद से बढ़ गया तो दुर्गादत्त ने खुद को परिवार सहित अपने घर में बंद कर लिया। इसके बाद उसने घर को आग लगा दी और खुद भी परिवार सहित जल गया। मरने से पहले दुर्गादत्त ने राजा को शाप दिया था कि जब भी राजा चावल खाएगा तो उसे चावल के दानों की जगह कीड़े दिखाई देंगे। वहीं पीने का पानी खून बन जाएगा। बाद में शाप का असर दिखने लगा और राजा का खाना पीना मुश्किल हो गया। राजा बहुत दुखी हुआ। उसका अहंकार टूट चुका था। शाप के डर से वह एक संत के पास गया जहां संत ने कहा कि उसे अपने राज्य में भगवान रघुनाथ का मंदिर बनवाना होगा। इसके लिए अयोध्या से मूर्ति लानी होगी। राजा ने ऐसा ही किया और अयोध्या से श्रीराम की बनाई भगवान रघुनाथ की मूर्ति लाकर कुल्लू में भव्य मंदिर बनवा दिया। इसके बाद घाटी में समृद्घि लौटने लगी। राजा ने अपना राज्य भगवान रघुनाथ को सौंप दिया। इसी के बाद ऐतिहासिक दशहरा मनाया जाने लगा। घाटी में भगवान रघुनाथ सबसे बड़े देवता हैं और हजारों देवता उनके आगे शीश झुकाते हैं।कहते हैं भगवान रघुनाथ सबसे अमीर देवताओं में से एक है। घाटी के लोग आज भी प्राकृतिक आपदा के समय अपने ईष्ट देव की पूजा अर्चना करते हैं। देवता उनकी सारी मन्नतें पूरी भी करते हैं।
जय श्री रघुनाथ...
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