Saturday, March 14, 2015

जीण माता।


जीण माता।
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित धार्मिक महत्त्व का एक गाँव है। यह सीकर से २९ किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। यहाँ की कुल जनसंख्या ४३५९ है। यहाँ पर जीणमाता का एक प्राचीन मन्दिर स्थित है। जीणमाता का यह पवित्र मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना माना जाता है।

लोक मान्यताओं के अनुसार जीण का जन्म चौहान वंश के राजपूत परिवार में हुआ। उनके भाई का नाम हर्ष था जो बहुत खुशी से रहते थे। एक बार जीण का अपनी भाभी के साथ विवाद हो गया और इसी विवाद के चलते जीण और हर्ष में नाराजगी हो गयी। हर्ष अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने उन्हें मनाने काजल शिखर पर पहुंचे और अपनी बहन को घर चलने के लिए कहा लेकिन जीण माता ने घर जाने से मना कर दिया। बहन को वहां पर देख हर्ष भी पहाड़ी पर तप भैरो की तपस्या करने लगा और उसने भैरो पद प्राप्त कर लिया। माता आज भी प्रसाद के रूप में शराब का सेवन करती है।

यह मंदिर चूना पत्थर और संगमरमर से बना हुआ है। यह मंदिर आठवीं सदी में निर्मित हुआ था।

लोक मान्यता के अनुसार एक बार मुगलों के बादशाह औरंगजेब ने जीण माता और भैरो के मंदिर को तोडऩे के लिए अपने सैनिकों को भेजा। जीण माता और भैरो के मंदिर को तोडऩे के बारे में जब लोगों को पता चला तो वह बहुत दुखी हुए। बादशाह के इस व्यवहार से दुखी होकर लोग जीण माता की प्रार्थना करने लगे। जीण माता ने अपना चमत्कार दिखाया और वहां पर मधुमक्खियों के एक झुंड ने मुगल सेना पर धावा बोल दिया। मधुमक्खियों के झुंड ने जैसे ही मुगल सेना पर धावा बोला सभी सैनिक वहां से भाग गए, और दूसरी तरफ औरंगजेब भी गंभीर रुप से बीमार हो गया। औरंगजेब ने माता के मंदिर में आकर अपनी गलती की मांफी मांगी और माता को वचन दिया कि वह हर महीने सवा मण अखंड तेल दीप के लिए भेंट करेगा। इसके बाद औरंगजेब की तबीयत में सुधार होने लगा। पहले शासन व्यवस्था करता था, आज भक्तो के द्वारा सुव्यवस्था है।

ओरंगजेब द्वारा किये गए विध्वंस के चिन्ह आज भी दूर दूर तक बिखरे हुए हैं। प्रस्तर पर उकेरे अनुपम पौराणिक आख्यान, अदभुत पुरातात्विक कलाकृतियाँ - जिसमें ना जाने कितने कलाकारों का अमूल्य परिश्रम लगा होगा आज धूल धूसरित खंडित जहां तहां बिखरे पड़े हैं। पुराने शिव मंदिर के स्थान पर नवीन मंदिर निर्माण हो चुका है, किन्तु खंडित ध्वंसावशेष बता रहे हैं कि पुराने मंदिर से उसकी कोई तुलना नहीं हो सकती। संगमरमर का विशाल शिव लिंग तथा नंदी प्रतिमा आकर्षक है। पराशर ब्राह्मण वंश परंपरा से उनकी सेवा पूजा में नियुक्त हैं। पास ही हर्षनाथ का मंदिर है जहां चामुंडा देवी तथा भैरव नाथ के साथ उनकी दिव्य प्रतिमाये स्थित हैं। सेकड़ों के तादाद में काले मुंह के लंगूर मंदिर पर चढ़ाए जाने वाले प्रसाद के पहले अधिकारी हैं। कोई आनाकानी करे तो वे जबरन लेने में संकोच नहीं करते।

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