सिद्ध सम्पुट-मन्त्र।
दुर्गा सप्तशती के कुछ सिद्ध सम्पुट-मन्त्र।
श्रीमार्कण्डे्यपुराणान्तर्गत देवीमाहात्मय में ‘श्लोक’, ‘अर्ध श्लोक’ और ‘उवाच’ आदि मिलाकर 700 मन्त्र हैं। यह माहात्मय दुर्गासप्तशती के नाम से प्रसिद्ध है। सप्तशती अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष- चारों पुरूषार्थों को प्रदान करने वाली है। जो पुरूष जिस भाव और जिस कामना से श्रद्धा एवं विधि के साथ सप्तशती का पारायण करता है, उसे भी भावना और कामना के अनुसार निश्चय ही फल-सिद्धि होती है। इस बात का अनुभव अगणित पुरूषों को प्रत्यक्ष हो चुका है। यहां हम कुछ ऐसे चुने हुए मन्त्रों का उल्लेख करते हैं, जिनका सम्पुट देकर विधिवत् पारायण करने से विभिन्न पुरूषार्थों की व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से सिद्धि होती है। इनमें अधिकांश सप्तशती के ही मन्त्र हैं और कुछ बाहर के भी हैं–
विपति-नाश और शुभ की प्राप्ति के लिये-
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी।
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।।
भय-नाश के लिये-
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमविन्ते।।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु् ते।।
पाप-नाश के लिये-
हिनस्ति दैत्यातेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योवऽन: सुतानिव।।
रोग-नाश के लिये-
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा, रूष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वानमाश्रितानां न विपन्नपराणां, त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
महामारी-नाश के लिये-
जयन्ती मगंला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वाधा नमोऽस्तु ते।।
आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये-
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
सुलक्षणा पत्नि की प्राप्ति के लिये-
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृतानुसारणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोभ्दवाम।।
रक्षा पाने के लिये-
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्विनेन च।।
समस्त विद्याओं की और तथा समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये-
विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा:, स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्व्यैक्या पूरितम्मबयैतत्, का ते स्तुति: सत्व्यपरा परोक्ति:।।
सब प्रकार के कल्यााण के लिये-
सर्वमंगलमंलये शिवे स्वा्र्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्के गौरि नारायणि नमोऽस्तुे ते।।
शक्ति-प्राप्ति के लिये-
सृष्टिस्थितीविनाशांनां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुण्मये नारायणि नमोऽस्तु ते।।
प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये-
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वर्तिहारिणी।
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव।।
स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिये-
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदानि।
त्वं स्तुता स्तुुतये का वा भवन्तु परमोक्तय:।।
स्वप्न में सिद्धि और असिद्धि जानने के लिये-
दुर्गे देवि नमस्तुुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वपने सर्वं प्रदर्शय।।
जय माँ दुर्गा...
ReplyDeletesamput mantra krishna ji kye ha kya
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