कामाक्षा देवी।
कामाक्षा देवी-साक्षात् दर्शन।
सिद्धनाथ-चरित्रसहित कामाक्षा-माहात्माय
मोहिनी बोली- विप्रवर! मैं कामाक्षा देवी का माहात्मय सुनना चाहती हॅू। पुरोहित वसु ने कहा-मोहिनी! कामाक्षा बड़ी उत्कृकष्ट देवी हैं। वे पूर्व दिशा में रहती हैं। वे कलियुग में मनुष्यों को सिद्धी प्रदान करने वाली हैं। भद्रे! जो वहां जाकर नियमित भोजन करते हुए कामाक्षा देवी का पूजन करता है और दृढ़ आसन से बैठकर वहां एक रात व्यतीत करता है, वह साधक देवी का दर्शन कर लेता है। वह देवी भंयकर रूप से मनुष्यों के सामने प्रकट होती है। उसे समय उसे देखकर जो विचलित नहीं होता, वह मनोवांचिछत सिद्धी को पा लेता है। वरानने! वहां पार्वती जी के पुत्र सिद्घनाथ रहते हैं, जो उग्र तपस्या में स्थित रहते हैं। लोगों को वे कभी दर्शन नहीं देते हैं। सत्युग, त्रेता, द्वापर- इन तीन युगों में सब लोग उन्हें प्रत्यक्ष देखते हैं, किंतु कलियुग में जबतक उसका एक चरण स्थित रहता है, वे अन्तर्धान हो जाते हैं। जो वहां जाकर भक्तिभाव से कामाक्षा देवी की नित्य पूजा करते हुए एक वर्षतक सिद्धनाथजी का चिन्तन करता है, वह स्वप्न में उनका दर्शन पाता हैं। दर्शन के अन्त में एकाग्रचित होकर उनके द्वारा सूचित की हुई सिद्धी को पाकर इस पृथ्वी पर सिद्ध होता है। शुभे! फिर वह सब लोकों की कामना पूर्ण करता हुआ हुआ सर्वत्र विचरता है। तीनों लोकों में जो-जो वस्तुए हैं, उन सबको वह वरदान के प्रभाव से खींच लेता है। भद्रे! विज्ञान में पारंगत योगी मत्सयनाथ ही ‘सिद्धनाथ्ा के नाम से वहां विराजमान हैं। वे लोगों को अभीष्ट वस्तुएं देते हुए अत्यन्त घोर तपस्या में लगे हैं।
कामाक्षा देवी-साक्षात् दर्शन।
सिद्धनाथ-चरित्रसहित कामाक्षा-माहात्माय
मोहिनी बोली- विप्रवर! मैं कामाक्षा देवी का माहात्मय सुनना चाहती हॅू। पुरोहित वसु ने कहा-मोहिनी! कामाक्षा बड़ी उत्कृकष्ट देवी हैं। वे पूर्व दिशा में रहती हैं। वे कलियुग में मनुष्यों को सिद्धी प्रदान करने वाली हैं। भद्रे! जो वहां जाकर नियमित भोजन करते हुए कामाक्षा देवी का पूजन करता है और दृढ़ आसन से बैठकर वहां एक रात व्यतीत करता है, वह साधक देवी का दर्शन कर लेता है। वह देवी भंयकर रूप से मनुष्यों के सामने प्रकट होती है। उसे समय उसे देखकर जो विचलित नहीं होता, वह मनोवांचिछत सिद्धी को पा लेता है। वरानने! वहां पार्वती जी के पुत्र सिद्घनाथ रहते हैं, जो उग्र तपस्या में स्थित रहते हैं। लोगों को वे कभी दर्शन नहीं देते हैं। सत्युग, त्रेता, द्वापर- इन तीन युगों में सब लोग उन्हें प्रत्यक्ष देखते हैं, किंतु कलियुग में जबतक उसका एक चरण स्थित रहता है, वे अन्तर्धान हो जाते हैं। जो वहां जाकर भक्तिभाव से कामाक्षा देवी की नित्य पूजा करते हुए एक वर्षतक सिद्धनाथजी का चिन्तन करता है, वह स्वप्न में उनका दर्शन पाता हैं। दर्शन के अन्त में एकाग्रचित होकर उनके द्वारा सूचित की हुई सिद्धी को पाकर इस पृथ्वी पर सिद्ध होता है। शुभे! फिर वह सब लोकों की कामना पूर्ण करता हुआ हुआ सर्वत्र विचरता है। तीनों लोकों में जो-जो वस्तुए हैं, उन सबको वह वरदान के प्रभाव से खींच लेता है। भद्रे! विज्ञान में पारंगत योगी मत्सयनाथ ही ‘सिद्धनाथ्ा के नाम से वहां विराजमान हैं। वे लोगों को अभीष्ट वस्तुएं देते हुए अत्यन्त घोर तपस्या में लगे हैं।
जय माँ कामाक्षा...
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