स्त्री दिवस विशेष।
ये लुटा-लुटा सा मेरी 'संवेदनाओ' का संसार क्यों है ..?
ये घुटा -घुटा सा हर 'एहसास' क्यों है..?
ये मेरी हर बात पर 'सवाल 'क्यों है ..?
ये डरी - डरी सी हर 'नार' क्यों है ..?
मैं हूँ जग तारिणी मेरे साथ ऐसा 'व्यहवार' क्यों है ?
मैं तरनी हूँ ,तनूजा हूँ,
मैं नही "व्योम" बला हूँ
मैं समुद्र भी हूँ किनारा हूँ
पत भी हूँ पतवार हूँ
फिर मेरी नैया क्यों डूबे ..?
मैं धरती की धुल नही ,जो यूं ही उड़ जाउंगी
मेरा मन तो एक 'उपवन'
जिसमे सपनों के फूल खिले
मेरा तन भी 'हाड़ मॉस' का
जिसमे दिल भी 'धडकता' है
देखकर मेरा जीवन "बदहवास"
क्यों नही जगता मानवीय "एहसास "
स्त्री दिवस विशेष...
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