Thursday, May 14, 2015

ब्रह्माण्ड पुराण।

ब्रह्माण्ड पुराण।
ब्रह्माण्ड पुराण में ब्रह्माण्ड का विस्तार एवं भौगोलिक वर्णन है। गणना की दृष्टि से यह पुराण 18वाँ महापुराण है। यह पुराण तीन भागों में विभक्त है। पूर्व, मध्यम तथा उत्तर। इस पुराण में 156 अध्याय एवं 12 हजार श्लोक हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्व है। छन्द शास्त्र की दृष्टि से भी यह पुराण उच्च कोटि का पुराण है।

ब्रह्माण्डचरितोक्त्वाद् ब्रह्माण्डं परिकीर्तितम्।।
गुरू अपना श्रेष्ठ ज्ञान सर्वप्रथम अपने योग्य शिष्य को देता है। जैसे ब्रह्मा ने यह ज्ञान वशिष्ठ को, वशिष्ठ ने अपने पौत्र पाराशर को, पाराशर ने जातुकर्ण ऋषि को, जातुकर्ण ने द्वैपायन को, द्वैपायन ने इस पुराण का ज्ञान अपने पाँच शिष्यों जैमिनी, सुमन्तु, वैश्यमपायन, पेलव और लोमहर्षण सूत को दिया। लोमहर्षण सूतजी ने इसे भगवान वेद व्यास जी से सुना। फिर नैमिषारण्य तीर्थ में हजारों ऋषि-मुनियों को इस पुराण की कथा सुनायी।

ब्रह्माण्ड पुराण में चोरी करना महापाप बताया गया है। देवताओं एवं ब्राह्मणों की सम्पत्ति की चोरी करने वाला व्यक्ति दण्ड का अधिकारी होता है। इस पावन पुराण में चारों युगों का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। राजाओं के गुण-दोष, ध्रुव-चरित्र, गंगावतरण की कथा, त्रिपुर सुन्दरी भाण्डासुर कथा, विश्वामित्र आख्यान, वर्णाश्रम धर्म, हयग्रीव अवतार इत्यादि कथायें इस पुराण की महिमा को और भी बढ़ाते हैं।

ब्रह्माण्ड पुराण कथा सुनने का फल:-
ब्रह्माण्ड पुराण के उपदेष्टा प्रजापति ब्रह्मा को माना जाता है। इस पुराण को पाप नाशक, पुण्य प्रदान करने वाला, और सर्वाधिक पवित्र माना गया है। यह यश, आयु, कीर्ति और श्री की वृद्धि करने वाला पुराण है।

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