नर्क का वर्णन।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विकास में पुराणों का बहुत गहरा प्रभाव रहा है। कहते हैं कि पुराणों की रचना स्वयं ब्रह्मा जी ने सृष्टि के प्रथम और प्राचीनतम ग्रन्थ के रूप में की थी। ऐसी मान्यता है कि पुराण उचित और अनुचित का ज्ञान करवाकर मनुष्य को धर्म और नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देते हैं। ये मनुष्य के शुभ-अशुभ कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें सत्कर्म करने को प्रेरित करते हैं और दुष्कर्म करने से रोकते हैं।
यद्यपि पुराणों की विषय-वस्तु में समय-समय पर कतिपय स्वार्थी व लालची व्यक्तियों (पुरोहितों) द्वारा कर्मकाण्डों व रूढ़ियों की मिलावट भी की गयी है, फिर भी इनमें लिखित अनेक प्रकरण वस्तुतः उच्च मानवीय मूल्यों के पोषक व नैतिक जीवन के लिए पथ-प्रदर्शन का कार्य करने वाले हैं। कुछ अंश तो इतने अद्भुत, रोचक व भावपूर्ण हैं कि इनको पढ़ने से मन में अपने आस-पास के मानव समाज का चित्र सहज ही खिंचता चला जाता है।
मैं यहाँ ऐसा ही एक रोचक विवरण ‘गरुड़ पुराण’ से प्रस्तुत कर रहा हूँ। गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु द्वारा अपने वाहन गरुड़ की जिज्ञासा को शान्त करने के लिए दिए गये उपदेशों का उल्लेख किया गया है। महर्षि कश्यप के पुत्र पक्षीराज गरुड़ ने भगवान विष्णु से प्राणियों की मृत्यु के बाद की स्थिति, जीव की यमलोक यात्रा, विभिन्न कर्मों से प्राप्त होने वाले नरकों, योनियों तथा पापियों की दुर्गति से सम्बन्धित अनेक गूढ़ प्रश्न पूछे थे। इन्ही रहस्यों से संबन्धित प्रश्नों का समाधान करते हुए इस पुराण में एक जगह बताया गया है कि यमलोक में ‘चौरासी लाख’ नरक होते हैं। मृत्यु लोक में मनुष्य द्वारा जिस-जिस प्रकार के “पापकर्म” किये गये होते हैं, उसी के अनुसार अलग-अलग प्रकार के नरकों का निर्धारण/आबन्टन यमपुरी के अधिकारी (धर्मध्वज, चित्रगुप्त और धर्मराज) उसकी मृत्यु के बाद करते हैं। यहाँ कुछ चुने हुए विशेष प्रकार के “नरकों” और जिन कर्मों के फलस्वरूप ये भोगे जाते हैं उन विशिष्ट प्रकार के “पापकर्मों” का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है:-
तामिस्र: जो व्यक्ति दूसरों के धन ,स्त्री और पुत्र का अपहरण करता है, उस दुरात्मा को तामिस्र नामक नरक में यातना भोगनी पड़ती है। इसमें यमदूत उसे अनेक प्रकार का दण्ड देते हैं ।
अंधतामिस्र: जो पुरूष किसी के साथ विश्वासघात कर उसकी स्त्री से समागम करता है, उसे अंधतामिस्र नरक में घोर यातना भोगनी पड़ती है।इस नरक में वह नेत्रहीन हो जाता है।
महारौरव: इस नरक में माँस खाने वाले रूरू जीव दूसरे जीवों के प्रति हिंसा करने वाले प्राणियों को पीड़ा देते हैं ।
कुम्भीपाक: पशु-पक्षी आदि जीवों को मार कर पकाने वाला मनुष्य कुम्भीपाक नरक में गिरता है। यहाँ यमदूत उसे गरम तेल में उबालते हैं।
असिपत्र: वेदों के बताए मार्ग से हट कर पाखण्ड का आश्रय लेने वाले मनुष्य को असिपत्र नामक नरक में कोड़ों से मारकर दुधारी तलवार से उसके शरीर को छेदा जाता है।
शूकरमुख: अधर्मपूर्ण जीवनयापन करने वाले या किसी को शारीरिक कष्ट देने वाले मनुष्य को शूकरमुख नरक मे गिराकर ईख के समान कोल्हू में पीसा जाता है।
अंधकूप: दूसरे के दुःख को जानते हुए भी कष्ट पहुचाने वाले व्यक्ति को अंधकूप नरक में गिरना पड़ता है। यहाँ सर्प आदि विषैले और भयंकर जीव उसका खून पीते हैं।
संदंश: धन चुराने या जबरदस्ती छीनने वाले प्राणी को संदंश नामक नरक में गिरना पड़ता है। जहाँ उसे अग्नि के समान संतप्त लोहे के पिण्डों से दागा जाता है।
तप्तसूर्मि: जो व्यक्ति जबरन किसी स्त्री से समागम करता है, उसे तप्तसूर्मि नामक नरक में कोड़े से पीटकर लोहे की तप्त खंभों से आलिंगन करवाया जाता है।
शाल्मली: जो पापी व्यक्ति पशु आदि प्राणियों से व्यभिचार करता है, उसे शाल्मली नामक नरक में गिरकर लोहे के काँटों के बीच पिसकर अपने कर्मों का फ़ल भोगना पड़ता है।
वैतरणी: धर्म का पालन न करने वाले प्राणी को वैतरणी नामक नरक में रक्त, हड्डी, नख, चर्बी, माँस आदि अपवित्र वस्तुओं से भरी नदी में फेंक दिया जाता है।
प्राणरोध: मूक प्राणियों का शिकार करने वाले लोगों को प्राणरोध नामक नरक में तीखे बाणों से छेदा जाता है।
विशसन: जो मनुष्य यज्ञ में पशु की बलि देतें हैं, उन्हें विशसन नामक नरक में कोड़ों से पीटा जाता है।
लालाभक्ष: कामावेग के वशीभूत होकर सगोत्र स्त्री के साथ समागम करने वाले पापी व्यक्ति को लालाभक्ष नरक में रहकर वीर्यपान करना पड़ता है।
सारमेयादन: धन लूटने वाले अथवा दूसरे की सम्पत्ति को नष्ट करने वाले को व्यक्ति को सारमेयादन नरक में गिरना पड़ता है। जहाँ सारमेय नामक विचित्र प्राणी उसे काट-काट कर खाते हैं।
अवीचि: दान एवं धन के लेन-देन में साक्षी बनकर झूठी गवाही देने वाले व्यक्ति को अवीचि नरक में, पर्वत से पथरीली भूमि पर गिराया जाता है; और पत्थरों से छेदा जाता है।
अयःपान: मदिरापान करने वाले मनुष्य को अयःपान नामक नरक में गिराकर गर्म लोहे की सलाखों से उसके मुँह को छेदा जाता है।
क्षारकर्दम: अपने से श्रेष्ठ पुरूषों का सम्मान न करने वाला व्यक्ति क्षारकर्दम नामक नरक में असंख्य पीड़ाएँ भोगता है।
शूलप्रोत: पशु-पक्षियों को मारकर अथवा शूल चुभोकर मनोरंजन करने वाले मनुष्य को शूलप्रोत नाम नरक में शूल चुभाए जाते हैं। कौए और बटेर उसके शरीर को अपनें चोंचों से छेदते हैं।
अवटनिरोधन: किसी को बंदी बनाकर, उसे अंधेरे स्थान पर रखने वाले व्यक्ति को अवटनिरोधन नामक नरक में रखकर विषैली अग्नि के धुएँ से कष्ट पहुँचाया जाता है।
पर्यावर्तन: घर आए अतिथियों को पापी दृष्टि से देखने वाले व्यक्ति को पर्यावर्तन नामक नरक में रखा जाता है।जहाँ कौए, गिद्ध, चील, आदि क्रूर पक्षी अपनी तीखी चोंचों से उसके नेत्र निकाल लेते हैं।
सूचीमुख: सदा धन संग्रह में लगे रहने वाले और दूसरों की उन्नति देखकर ईर्ष्या करने वाले मनुष्य को सूचीमुख नरक में यमदूत सूई से वस्त्र की भाँति सिल देते हैं।
कालसूत्र: पिता और ब्राह्मण से वैर करने वाले मनुष्य को इस नरक में कोड़ों से मारा जाता है; और दुधारी तलवार से छेदा जाता है।
पूर्ण सूची देना कठिन है क्यों कि इनकी कुल संख्या ८४ लाख बतायी जाती है। लेकिन इतने से ही यह तो स्पष्ट होता ही है कि इस संसार में मनुष्य योनि में पैदा होने वाले जीवों के भीतर जो पापकर्म दिखायी देते हैं उनकी पहचान भारतीय सभ्यता के आदिकाल में ही बहुत सूक्ष्मता से कर ली गयी थी।
जय श्री राम...
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