Sunday, June 28, 2015

भगवान श्री राम।


भगवान श्री राम।
परम-कृपालु भगवान श्री राम वन-मार्ग में सदा आगे चलते ताकि राह में जितने कांटे पड़े हों सब उन्हीं को चुभे, उनके पीछे-पीछे चलने वाली सीता जी और लक्ष्मण जी को कभी कोई कांटे चुभने का कष्ट न हो! और जब भगवान विश्राम करते तो लक्ष्मण भैया उनके चरणों को निहारके सारे कांटे निकालते।
जे चरन सिव अज पूज्य रज सुभ परसि मुनिपतिनी तरी।
नख निर्गता मुनि बंदिता त्रैलोक पावनि सुरसरी।।
ध्वज कुलिस अंकुस कंज जुत बन फिरत कंटक किन लहे।
पद कंज द्वंद मुकुंद राम रमेस नित्य भजामहे।।
भावार्थ:- जो चरण शिवजी और ब्रह्माजी के द्वारा पूज्य हैं, तथा जिन चरणों की कल्याणमयी रज का स्पर्श पाकर (शिला बनी हुई) गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या तर गई, जिन चरणों के नख से मुनियों द्वारा वन्दित, त्रैलोक्य को पवित्र करने वाली देवनदी गंगाजी निकलीं और ध्वजा, वज्र अंकुश और कमल, इन चिह्नों से युक्त जिन चरणों में वन में फिरते समय काँटे चुभ जाने से घट्ठे पड़ गए हैं, हे मुकुन्द! हे राम! हे रमापति! हम आपके उन्हीं दोनों चरणकमलों को नित्य भजते रहते हैं।

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