Sunday, June 07, 2015

कुम्भ की कथा।


कुम्भ की कथा।
कुम्भ की कथा का वर्णन विष्णुपुराण में मिलता है। जब देवताओं और असुरों में संग्राम हुआ तो देवता हारने लगे। ऐसे में उन्होंने श्री विष्णु से मदद की गुहार लगाई। विष्णु ने देवताओंको असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया। विष्णु के अनुसार इस समुद्र मंथनसे निकलने वाले अमृत को पीकर देवता अमर हो जायेंगे और फिर असुरों को आसानी से हरा सकेंगे।

असुर अमृत के लालच में देवताओं के साथ समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए। विष्णु के अवतार कछप की पीठ पर विराट मद्रांचल पर्वत को मथनी बनाया गया और नाग राज वासुकी को रस्सी बना कर असुरों और देवताओं ने समुद्र मंथन शुरू किया। समुद्र मंथन से एक-एक कर कुल चौदह महारत्न निकले। इस मंथन से हलाहलविष भी निकला जिसे पीने से भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वो नीलकंठ कहलाए। समुद्र मंथन के अंत में धनवन्तरी अमृत-कलश ले कर प्रकट हुए। अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों में पुनः युद्ध छिड गया।

युद्ध को रोकने के लिए विष्णु ने मोहनी (अत्यंत सुन्दर स्त्री) का रूप धारण किया। मोहनी ने दोनों के बीच समझौता कराया कि वो एक-एक कर देवताओं और असुरों को अमृत-पान कराएगी। मोहनी ने छल से सिर्फ देवताओं को ही अमृत पिलाना शुरू कर दिया। असुरों में से एक असुर राहु को इस बात का पता लग गया और वो वेश बदल कर देवताओं के बीच जा बैठा। सूर्य और चन्द्रमा को इस बात का पता लग गया। उन्होंने मोहनी को इस बात से परिचित कराया लेकिन तब तक वो अमृत-पान कर चुका था। इस पर विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सर धड़ से अलग कर दिया। उसके दो हिस्से ही राहू और केतु कहलाए। चूँकि वो अमृत पी चुका था,इसलिए ऐसा माना जाता है कि वही राहु और केतु सूर्य और चन्द्रमा पर अपनी काली छाया डाल कर ग्रहण का निर्माण करते हैं।

इसी बीच अमृत को असुरों से बचाने के लिए इन्द्र के पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर वहां से भागने लगे। वो लगातार १२ दिन तक भागते रहे। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदे १२ स्थानों पर गिरी। जिनमे से चार स्थान पृथ्वी पर और आठ स्वर्ग पर थे। पृथ्वी पर ये चार स्थान थे - प्रयाग (इलाहाबाद), नासिक, उज्जैन और हरिद्वार। देवताओं का एक दिन मनुष्यों के १२ साल के बराबर होता है, इसीलिए हर बारहवे साल इन स्थानों पर महाकुम्भ का अयोजन होता है।

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