अर्जुन को अहंकार।
कृष्ण और अर्जुन की दोस्ती का द्वारिका में एक ब्राह्मण के घर जब भी
कोई बालक जन्म लेता तो वह तुरंत मर जाता एक बार वह ब्राह्मण अपनी ये व्यथा लेकर
कृष्ण के पास पहुंचा परन्तु कृष्ण ने उसे नियती का लिखा कहकर टाल दिया। उस समय
वहां अर्जुन भी मौजूद थे।अर्जुन को अपनी शक्तियों पर बड़ा गर्व था। अपने मित्र की
मदद करने के लिए अर्जुन ने ब्राह्मण को कहा कि मैं तुम्हारे पुत्रों की रक्षा
करूंगा। तुम इस बार अपनी पत्नी के प्रसव के समय मुझे बुला लेना ब्राह्मण ने ऐसा ही
किया लेकिन यमदूत आए और ब्राह्मण के बच्चे को लेकर चले गए। अर्जुन ने प्रण किया था
कि अगर वह उसके बालकों को नहीं बचा पाएगा तो आत्मदाह कर लेगा। जब अर्जुन आत्म दाह
करने के लिए तैयार हुए तभी श्री कृष्ण ने अर्जुन को रोकते हुए कहा कि यह सब तो
उनकी माया थी उन्हें ये बताने के लिए कि कभी भी आदमी को अपनी ताकत पर गर्व नहीं करना
चाहिए क्यों कि नियती से बड़ी कोई ताकत नहीं होती। कृष्ण अर्जुन को अपना शिष्य ही
नहीं बल्कि मित्र भी मानते थे। जब उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि उनके मित्र
अर्जुन के मन में अपनी शक्तियों और क्षमताओं को लेकर अहंकार पैदा हो गया है तो
उन्हेंने जान बूझकर यह सारा खेल रचाया। ताकि अर्जुन को यह अहसास हो सके कि इंसान
के हाथ में सब कुछ नहीं है। ऐसा करके कृष्ण ने अर्जुन के प्रति अपनी मित्रता का
फर्ज ही निभाया तथा अर्जुन को अहंकार से दूर किया।
जय श्री कृष्णा…
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