Sunday, July 19, 2015

श्रीजगन्नाथ रथ यात्रा।


श्रीजगन्नाथ रथ यात्रा।
उड़ीसा में समुद्र तट पर स्थित पुरी के भगवान जगन्नाथ हिंदुओं के प्रधान देवता है। उन का आकर्षण केवल निश्चित भौगोलिक क्षेत्र, स्थान, संस्कृति और राष्ट्रीय स्तर तक ही सीमित नही है बल्कि विदेशों में भी बडी संख्या में श्रध्दालु श्रीजगन्नाथ के दर्शन के लिए पुरी पहुंचते हैं। इसी लिए उन्हें जगन्नाथ या ब्रह्मांड का भगवान कहते है। देश, धर्म तथा धार्मिक मान्यताओं से परे दुनिया भर के अनुयाईयों का परम भक्ति से सराबोर जनसमूह उस देव की एक झलक पाना चाहता है जो मिलन, एकता और अखंडता की मूर्ति है।

जगन्नाथ संप्रदाय कितना पुराना है तथा यह कब उत्पन्न हुआ था इस बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ नही कहा जा सकता। वैदिक साहित्य और पौराणिक कथाओं में भगवान जगन्नथ या पुरूषोत्तम का विष्णु के अवतार के रूप में उनकी महिमा का गुणगान किया गया है। अन्य अनुसंधान स्रोतों से इस बात के पर्याप्त सबूत है कि यह संप्रदाय वैदिक काल से भी पुराना है। इन स्रोतों के अनुसार भगवान जगन्नाथ शबर जनजातीय समुदाय से संबधित है और वे लोग इनकी पूजा गोपनीय रूप से करते थे। बाद में उनको पुरी लाया गया। वे सारे ब्रह्मांड के देव है तथा वे सबसे संबधित है। अनेक संप्रदायों जैसे वैष्णव, शैव, शाक्त, गणपति, बौध्द तथा जैन ने अपने धार्मिक सिंध्दातों में समानता पाई है। जगन्नाथ जी के भक्तों में सालबेग भी है जो जन्म से मुस्लिम था। भगवान जगन्नथ और उनके मंदिर ने अनेक संप्रदायों तथा धार्मिक समुदायों के धर्म गुरूओं का पुरी आकर्षित किया है। आदि शंकराचार्य ने इसे गोवर्धन पीठ स्थापित करने के लिए चुना। उन्होंने जगन्नाथाष्टक का भी संकलन किया। अन्य धार्मिक संत या धर्म गुरू जो यहां आये तथा भगवान जगन्नाथ की पूजा की उनमें माधवाचार्य, निम्बार्काचार्य, सांयणाचार्य, रामानुज, रामानंद, तुलसीदास, नानक, कबीर, तथा चैतन्य हैं और स्थानीय संत जैसे जगन्नाथ दास, बलराम दास, अच्युतानंद, यशवंत, शिशु अनंत और जयदेव भी यहां आये तथा भगवान जगन्नाथ की पूजा की। पुरी में इन संतों द्वारा मठ या आश्रम स्थापित किये गये जो अभी भी मौजूद हैं तथा किसी न किसी रूप में जगन्नाथ मंदिर से संबधित हैं।

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