भगवान भोलेनाथ।
श्मशानेष्वाक्रीडा स्मरहर पिशाचाः सहचरा
श्चिताभस्मालेपः स्रगपि नृकरोटीपरिकरः ।
अमंगल्यं शीलं तव भवतु नामैवमखिलं
तथापि स्मर्तृणां वरद परमं मंगलमसि ।।
हे वरद शंकर जी। आप श्मशानवासी है आप वहाँ क्रीड़ा करते हैं, भूत-प्रेत-पिशाच आपके मित्र है, आपके शरीर पर चिता के भस्म का लेपन शोभा पा रहा है और मनुष्यों के खोपडीयों की माला आपके गले में शोभित है। इस तरह का आपका रूप देखा जाय तो आप में कुछ मंगल या शुभ नहीं दिखाई पडता (अर्थात देखने में सब अशुभ ही दीखता है), किन्तु जो मनुष्य भक्ति पूर्वक आपका स्मरण करते है, उन सभी भक्तों का आप सदैव शुभ और मंगल करते है। भगवान भोलेनाथ की अखंड कृपा आप सब पर बनी रहे।
जय श्री महाकाल...
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