Sunday, September 27, 2015

स्यमन्तक मणि।



स्यमन्तक मणि।
भगवान कृष्ण और जामवंत में क्यों हुआ 28 दिनों तक युद्ध?
एक थे राजा सत्राजित जिन्होने सूर्य की तपस्या कर स्यमन्तक नाम की मणि पाई (वह मणि रोजाना 8 भरी सोना देती थी साथ ही जिस स्थान में वह मणि होती थी वहाँ के सारे कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते थे), एक दिन जब कृष्ण खेल रहे थे तो सत्राजित मणि सर पर लगा उनसे मिलने पहुंचे जिसे देख कृष्ण ने कहा की इस मणि के अधिकारी तो राजा उग्रसेन जी है। बात सुन सत्राजित बिना कुछ बोले ही वहाँ से उठ कर चले गए, मणि को अपने घर के मन्दिर में स्थापित कर दिया। एक दिन राजा का भाई स्यमन्तक को पहन कर घोड़े पर सवार हो शिकार पे निकला जन्हा एक सिंह ने उसे मार गिराया। मणि भी उसके पेट में चली गई जिसे ऋक्षराज जामवंत ने मारा और वह मणि पाली और अपनी गुफा में चला गया। जामवंत ने उस मणि को अपने बालक को दे दिया जो उसे खिलौना समझ उससे खेलने लगा।

भाई के गायब होने पर राजा ने बिना सोचे कृष्ण जी पर हत्या और चोरी के आरोप फैला दिए। आरोप झुटलाने के लिए श्री कृष्ण वन में गए जन्हा उन्होंने घोड़ा सहित प्रसेनजित को मरा हुआ देखा पर मणि नहीं दिखी। निकट ही सिंह के पंजों के चिन्ह थे, जिनके सहारे आगे बढ़ने पर उन्हें मरे हुए सिंह का शरीर मिला। वहाँ पर रीछ के पैरों के पद-चिन्ह भी मिले जो कि एक गुफा तक गये थे। जब वे उस भयंकर गुफा के निकट पहुँचे तब श्री कृष्ण ने यादवों से कहा कि तुम लोग यहीं रुको। मैं इस गुफा में प्रवेश कर मणि ले जाने वाले का पता लगाता हूँ। इतना कहकर वे सभी यादवों को गुफा के मुख पर छोड़ उस गुफा के भीतर चले गये।वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि वह मणि एक रीछ के बालक के पास है जो उसे हाथ में लिए खेल रहा था। श्री कृष्ण ने उस मणि को उठा लिया। यह देख कर जामवंत अत्यन्त क्रोधित होकर श्री कृष्ण को मारने के लिये झपटा। जामवंत और श्री कृष्ण में भयंकर युद्ध होने लगा। जब कृष्ण गुफा से वापस नहीं लौटे तो सारे यादव उन्हें मरा हुआ समझ कर बारह दिन के उपरांत वहाँ से द्वारिकापुरी वापस आ गये तथा समस्त वृतांत वासुदेव और देवकी से कहा। वासुदेव और देवकी व्याकुल होकर महामाया दुर्गा की उपासना करने लगे। उनकी उपासना से प्रसन्न होकर देवी दुर्गा ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा पुत्र तुम्हें अवश्य मिलेगा।

श्री कृष्ण और जामवंत दोनों ही पराक्रमी थे। युद्ध करते हुये गुफा में अट्ठाईस दिन बीत गए। कृष्ण की मार से महाबली जामवंत की नस टूट गई। वह अति व्याकुल हो उठा और अपने स्वामी श्री रामचन्द्र जी का स्मरण करने लगा। जामवंत के द्वारा श्री राम के स्मरण करते ही भगवान श्री कृष्ण ने श्री रामचन्द्र के रूप में उसे दर्शन दिये। जामवंत उनके चरणों में गिर गया और अपने कर्मो की क्षमा मांगी. तब कृष्ण ने उनसे कहा की रामअवतार के समय रावण के वध हो जाने के पश्चात मुझसे युद्ध करने की इच्छा व्यक्त की जो की मेने अगले अवतार में पूरी करने का वर दिया था. अपना कथन पूरा करने रघुवंशी अगला जन्म लेके आया है. जामवंत ने भगवान श्री कृष्ण से अपनी कन्या जामवंती का विवाह कर दिया।

कृष्ण द्वारका पहुँचे तो सत्राजित को बुलवा कर उसकी स्यमन्तक मणि उसे लौटा दी, अपने द्वारा लगाये गये कलंक के कारण शर्मिंदा राजा ने अपनी कन्या सत्य-भामा का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर दिया और वह मणि भी उन्हें दहेज में दे दी। किन्तु कृष्ण ने उस मणि को स्वीकार न करके सत्राजित को वापस कर दिया।

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