Monday, December 14, 2015

श्री नारायण।


श्री नारायण।
परोपकरणं येषां जार्गत हृदये सताम्।
नश्यन्ति विपदस्तेषां सम्पद: स्यु: पदे पदे।।

अर्थ : जिन सज्जनों के हृदय में परोपकार की भावना जागृत रहती है, उनकी तमाम विपत्तियां अपने आप दूर हो जाती हैं और उन्हें पग-पग पर सम्पत्ति एवं धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

भावार्थ : यहां आचार्य चाणक्य के कहने का अर्थ यह है कि परोपकार ही जीवन है। अपना पेट तो पशु भी भर लेता है। यदि पेट पालना ही जीवन का उद्देश्य है तो मानवता क्या हुई? स्वार्थी मनुष्य का जीवन निरर्थक है।

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