भगवान विष्णु।
हिन्दू धर्म के अनुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो भगवान शिव और ब्रह्मा को माना जाता है। जहाँ ब्रह्मा को विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है वहीं शिव को संहारक माना गया है। विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हैं। विष्णु का निवास क्षीर सागर है। उनका शयन सांप के ऊपर है। उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है जिसमें ब्रह्मा जी स्थित है। वह अपने नीचे वाले बाएं हाथ में पद्म (कमल) , अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा (कौमोदकी) ,ऊपर वाले बाएं हाथ में शंख (पांच्यजन्य), और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्र(सुदर्शन) धारण करते हैं।
स्वामी चिन्मयानन्द ने "विष्णु सह्स्रनाम:" के अपने अनुवाद में इसे और भली प्रकार समझाया है: धातु विस् का अर्थ अंदर आना है, संसार की सभी वस्तुएं और जीव इन्ही से व्याप्त हैं । उपनिषद भी इस बात का अपने मन्त्र में स्पष्ट रूप से आग्रह करते हैं: इस परिवर्तनशील संसार में जो कुछ भी है। अर्थात वह अंतरिक्ष , समय और जड़ से बंधे हुए नहीं है। चिन्मयानन्द आगे कहते हैं : जिससे सभी वस्तुएं व्याप्त हैं वही विष्णु है।
चतुर्भुज स्वरूप- भगवान विष्णु शंख, चक्र, गदा एवं पद्म धारण करते हैं। शंख शब्द का प्रतीक है, शब्द का तात्पर्य ज्ञान से है जो सृष्टि का मूल तत्त्व है। चक्र का अभिप्राय माया चक्र से है जो जड़ चेतन सभी को मोहित कर रही है। गदा ईश्वर की अनंत शक्ति का प्रतीक है और पद्म से तात्पर्य नाभि कमल से है जो सृष्टि का कारण है। इन चार शक्तियों से संपन्न होने के कारण हरि को चतुर्भुज कहा है।
हिन्दू धर्म के अनुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो भगवान शिव और ब्रह्मा को माना जाता है। जहाँ ब्रह्मा को विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है वहीं शिव को संहारक माना गया है। विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हैं। विष्णु का निवास क्षीर सागर है। उनका शयन सांप के ऊपर है। उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है जिसमें ब्रह्मा जी स्थित है। वह अपने नीचे वाले बाएं हाथ में पद्म (कमल) , अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा (कौमोदकी) ,ऊपर वाले बाएं हाथ में शंख (पांच्यजन्य), और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्र(सुदर्शन) धारण करते हैं।
स्वामी चिन्मयानन्द ने "विष्णु सह्स्रनाम:" के अपने अनुवाद में इसे और भली प्रकार समझाया है: धातु विस् का अर्थ अंदर आना है, संसार की सभी वस्तुएं और जीव इन्ही से व्याप्त हैं । उपनिषद भी इस बात का अपने मन्त्र में स्पष्ट रूप से आग्रह करते हैं: इस परिवर्तनशील संसार में जो कुछ भी है। अर्थात वह अंतरिक्ष , समय और जड़ से बंधे हुए नहीं है। चिन्मयानन्द आगे कहते हैं : जिससे सभी वस्तुएं व्याप्त हैं वही विष्णु है।
चतुर्भुज स्वरूप- भगवान विष्णु शंख, चक्र, गदा एवं पद्म धारण करते हैं। शंख शब्द का प्रतीक है, शब्द का तात्पर्य ज्ञान से है जो सृष्टि का मूल तत्त्व है। चक्र का अभिप्राय माया चक्र से है जो जड़ चेतन सभी को मोहित कर रही है। गदा ईश्वर की अनंत शक्ति का प्रतीक है और पद्म से तात्पर्य नाभि कमल से है जो सृष्टि का कारण है। इन चार शक्तियों से संपन्न होने के कारण हरि को चतुर्भुज कहा है।
जय श्री हरि:
ReplyDelete