माता लक्ष्मी।
सुख व ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी से जुड़ी शास्त्रों में लिखी बातों का एक संकेत यह भी है कि माता लक्ष्मी कर्म और कर्तव्य से जुड़े इंसान पर हमेशा मेहरबान रहती है। माता लक्ष्मी के भगवान विष्णु का संग चुनने के पीछे भी यही बात साफ होती है क्योंकि श्री हरि विष्णु जगत पालक माने गए हैं। पालन के पीछे भी निरंतर कर्म, पुरुषार्थ और कर्तव्य का ही मूल भाव है।
हर इंसान धन और समृद्धि के रूप में लक्ष्मी की प्रसन्नता की कामना रखता है, पर लक्ष्मी कृपा के लिए पवित्रता और परिश्रम जैसी कर्म, व्यवहार और स्वभाव में उतारने की अहम सीखों को विरले इंसान ही अपनाते हैं। यही कारण है कि सच्चाई व मेहनत के बिना पाया भरपूर धन भी मानसिक शांति छीन लेता है, तो कभी धन का अभाव जीवन को अशांत करता है।
इस तरह, धन का सुख, दायित्वों को समझ किसी काम से जुड़े बिना संभव नहीं होता। साथ ही मन और व्यवहार की पवित्रता दूसरों को भी सुख देती है। इसके लिए पावनता और वैभव की देवी माता लक्ष्मी की साधना शुक्रवार को बहुत ही शुभ मानी गई है।
शुक्रवार के दिन माता दुर्गा की तीन शक्तियों में एक महालक्ष्मी की साधना तमाम वैभव और यश देने वाली मानी गई है। शुक्रवार के दिन शाम को देवी लक्ष्मी की उपासना के पहले स्नान कर यथासंभव लाल वस्त्र पहन लक्ष्मी मंदिर या घर में लाल आसन पर बैठकर माता लक्ष्मी का ध्यान अक्षत और लाल फूल हाथ में लेकर नीचे लिखे मंत्र से करें –
महालक्ष्मी च विद्महे,
विष्णुपत्नी च धीमहि,
तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्।
माता लक्ष्मी की उपासना के लिए विशेष रूप से शाम के वक्त स्नान के बाद लालकुंकुम, लाल कमल या लाल फूल चढ़ाकर धूप व घी के दीप से आरती करें। मातालक्ष्मी को अनार के फल का भोग लगाएं। बाद यहां बताए जा रहे श्रीसूक्त के 3विशेष मंत्रों का स्मरण करें।
माता लक्ष्मी की संक्षिप्त पूजा के बाद माता लक्ष्मी के ऋग्वेद में बताए श्रीसूक्त केइन 3 मंत्रों को बोलें या जानकारी न होने पर किसी विद्वान ब्राह्मण से पूरे श्रीसूक्तका ही पाठ कराएं और सुनें। श्रीसूक्त के मंत्रों का अलग-अलग पाठ भी शुभ फल हीदेता है-
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते।।
अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे।।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।
माता के चरणों में फूल-अक्षत करने के साथ लाल चंदन, अक्षत, लाल वस्त्र, गुलाव के फूलों की माला चढ़ाकर कमलगट्टे की माला या तुलसी की माला से नीचे लिखे विशेष लक्ष्मी मंत्र का जप करें-
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै श्रीं श्रीं ॐ नम:।
पूजा व मंत्र जप के बाद माता को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं।
घी के पांच बत्तियों वाले दीप से आरती कर देवी से सुख-वैभव की कामना करें।
सुख व ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी से जुड़ी शास्त्रों में लिखी बातों का एक संकेत यह भी है कि माता लक्ष्मी कर्म और कर्तव्य से जुड़े इंसान पर हमेशा मेहरबान रहती है। माता लक्ष्मी के भगवान विष्णु का संग चुनने के पीछे भी यही बात साफ होती है क्योंकि श्री हरि विष्णु जगत पालक माने गए हैं। पालन के पीछे भी निरंतर कर्म, पुरुषार्थ और कर्तव्य का ही मूल भाव है।
हर इंसान धन और समृद्धि के रूप में लक्ष्मी की प्रसन्नता की कामना रखता है, पर लक्ष्मी कृपा के लिए पवित्रता और परिश्रम जैसी कर्म, व्यवहार और स्वभाव में उतारने की अहम सीखों को विरले इंसान ही अपनाते हैं। यही कारण है कि सच्चाई व मेहनत के बिना पाया भरपूर धन भी मानसिक शांति छीन लेता है, तो कभी धन का अभाव जीवन को अशांत करता है।
इस तरह, धन का सुख, दायित्वों को समझ किसी काम से जुड़े बिना संभव नहीं होता। साथ ही मन और व्यवहार की पवित्रता दूसरों को भी सुख देती है। इसके लिए पावनता और वैभव की देवी माता लक्ष्मी की साधना शुक्रवार को बहुत ही शुभ मानी गई है।
शुक्रवार के दिन माता दुर्गा की तीन शक्तियों में एक महालक्ष्मी की साधना तमाम वैभव और यश देने वाली मानी गई है। शुक्रवार के दिन शाम को देवी लक्ष्मी की उपासना के पहले स्नान कर यथासंभव लाल वस्त्र पहन लक्ष्मी मंदिर या घर में लाल आसन पर बैठकर माता लक्ष्मी का ध्यान अक्षत और लाल फूल हाथ में लेकर नीचे लिखे मंत्र से करें –
महालक्ष्मी च विद्महे,
विष्णुपत्नी च धीमहि,
तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्।
माता लक्ष्मी की उपासना के लिए विशेष रूप से शाम के वक्त स्नान के बाद लालकुंकुम, लाल कमल या लाल फूल चढ़ाकर धूप व घी के दीप से आरती करें। मातालक्ष्मी को अनार के फल का भोग लगाएं। बाद यहां बताए जा रहे श्रीसूक्त के 3विशेष मंत्रों का स्मरण करें।
माता लक्ष्मी की संक्षिप्त पूजा के बाद माता लक्ष्मी के ऋग्वेद में बताए श्रीसूक्त केइन 3 मंत्रों को बोलें या जानकारी न होने पर किसी विद्वान ब्राह्मण से पूरे श्रीसूक्तका ही पाठ कराएं और सुनें। श्रीसूक्त के मंत्रों का अलग-अलग पाठ भी शुभ फल हीदेता है-
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते।।
अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे।।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।
माता के चरणों में फूल-अक्षत करने के साथ लाल चंदन, अक्षत, लाल वस्त्र, गुलाव के फूलों की माला चढ़ाकर कमलगट्टे की माला या तुलसी की माला से नीचे लिखे विशेष लक्ष्मी मंत्र का जप करें-
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै श्रीं श्रीं ॐ नम:।
पूजा व मंत्र जप के बाद माता को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं।
घी के पांच बत्तियों वाले दीप से आरती कर देवी से सुख-वैभव की कामना करें।
जय श्री विष्णु्प्रिया...
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