Thursday, April 09, 2015

मीराबाई।

मीराबाई।
मीराबाई (१५०४-१५५८) कृष्ण-भक्ति शाखा की प्रमुख कवियित्री हैं। उनका जन्म १५०४ ईस्वी में जोधपुर के पास मेड्ता ग्राम मे हुआ था। कुड्की में मीरा बाई का ननिहाल था। उनके पिता का नाम रत्नसिंह था। उनके पति कुंवर भोजराज उदयपुर के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हे पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया किन्तु मीरां इसके लिए तैयार नही हुई। वे संसार की ओर से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। कुछ समय बाद उन्होंने घर का त्याग कर दिया और तीर्थाटन को निकल गईं। वे बहुत दिनों तक वृन्दावन में रहीं और फिर द्वारिका चली गईं। जहाँ संवत १५५८ ईस्वी में वो भगवान कृष्ण कि मूर्ति मे समा गई। मीरा बाई ने कृष्ण-भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है।

कृष्णभक्ति शाखा की हिंदी की महान कवयित्री हैं। उनकी कविताओं में स्त्री पराधीनता के प्रती एक गहरी टीस है, जो भक्ति के रंग में रंग कर और गहरी हो गयी है। मीरांबाई का जन्म संवत् 1504 में जोधपुर में कुरकी नामक गाँव में हुआ था। इनका विवाह उदयपुर के महाराणा कुमार भोजराज के साथ हुआ था। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं विवाह के थोड़े ही दिन के बाद उनके पति का स्वर्गवास हो गया था। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन- प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीरांबाईका कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह द्वारका और वृंदावन गईं। वह जहाँ जाती थीं, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग उनको देवियों के जैसा प्यार और सम्मान देते थे।

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